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सनातन परंपरा के संत रामानुजाचार्य स्वामी का पहला भव्य मंदिर

– संत रामानुजाचार्य स्वामी की अष्टधातु से बनी प्रतिमा दुनिया में सबसे बड़ी
– 1000 करोड़ रूपये की लागत से बनाया गया भव्य मंदिर, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल

सनातन परंपरा के किसी भी संत के लिए अभी तक इतना बड़ा और भव्य मंदिर नही बनाया गया है, संत रामानुजाचार्य स्वामी (Sant Ramanujacharya Swami) देश के पहले ऐसे संत है, जिनकी इनती बड़ी प्रतिमा स्थापित की जा रही है। वर्ष 2014 में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और लगभग 8 साल बाद यह भव्य मंदिर बनकर तैयार हो चुका है। मंदिर में संत रामानुजाचार्य स्वामी की अष्टधातु से बनी प्रतिमा दुनिया में सबसे बड़ी प्रतिमा है, जिसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (Guinness Book of World Records) में शामिल किया गया है। मंदिर की लागत लगभग 1000 करोड़ रूपये बताई जा रही है।

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संत रामानुजाचार्य स्वामी

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भारत में पहली बार समानता की बात करने वाले वैष्णव संत रामानुजाचार्य स्वामी का हैदराबाद (Hyderabad) में एक भव्य मंदिर बनाया गया है, मंदिर की कुल लागत लगभग 1000 करोड़ से ज्यादा है। मंदिर की खासियत ये है कि यहां रामानुजाचार्य की दो मूर्तियां बनाई गई है। पहली मूर्ति अष्टधातु की 216 फीट ऊंची है, जो स्थापित की जा चुकी है, इसे स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी नाम दिया गया है। दूसरी प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में रखी गई है, जो 120 किलो सोने से बनी होगी। हैदराबाद से करीब 40 किमी दूर रामनगर में बने इस मंदिर की कई खूबियां हैं। मंदिर के निर्माण की पूरी लागत दुनियाभर से दान के जरिए जुटाई गई है।

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अष्टधातु से बनी सबसे बड़ी प्रतिमा

सनातन परंपरा के वैष्णव संत रामानुजाचार्य स्वामी पहले ऐसे संत है, जिनकी इतनी बड़ी प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर का निर्माण 2014 में शुरू हुआ था। रामानुजाचार्य की बड़ी प्रतिमा का निर्माण चीन से करवाया गया है। संत रामानुजाचार्य स्वामी की अष्टधातु से बनी 216 फीट ऊंची मूर्ति जिसे 58 फीट ऊंची इमारत पर स्थापित किया गया है। इस प्रतिमा की लागत 400 करोड़ रुपए है। कुछ समय पहले ही इसे गिनीज बुक में दर्ज किया गया है, ये अष्टधातु से बनी सबसे बड़ी प्रतिमा है। वहीं अब इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (Guinness Book of World Records) में भी शामिल कर लिया गया है।

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संत रामानुजाचार्य स्वामी

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120 साल जिए थे संत रामानुजाचार्य स्वामी

संत रामानुजाचार्य स्वामी की 120 किलो सोने से बनी मूर्ति बनाने के पीछे एक विशेष कारण है। मंदिर के संस्थापक चिन्ना जियार स्वामी के मुताबिक संत रामानुजाचार्य स्वामी धरती पर 120 वर्ष तक रहे थे। इसलिए 120 किलो सोने से बनी मूर्ति की स्थापना की गई है। संत रामानुजाचार्य स्वामी ने सबसे पहले समानता का संदेश दिया था और समाज में उनके योगदान को आज तक वो स्थान नहीं मिल पाया, जिसके वो अधिकारी थे। इस मंदिर के जरिए उनकी समाज के निर्माण में रचनात्मक योगदान को दिखाया जाएगा।

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स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी

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45 एकड़ में बना मंदिर, 25 करोड़ के म्यूजिकल फाउंटेन

स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी और संत रामानुजाचार्य स्वामी टेंपल 45 एकड़ जमीन पर बनाया गया है, मंदिर का मूल भवन करीब 1.5 लाख स्क्वेयर फीट के क्षेत्र में बना है, जो 58 फीट ऊंचा है। इसी पर स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी रखी गई है। इस मंदिर में करीब 25 करोड़ की लागत से म्यूजिकल फाउंटेन लगाए गये है, इनके जरिए भी संत रामानुजाचार्य स्वामी की गाथा सुनाई जाएगी। मंदिर के निर्माण के लिए पत्थर राजस्थान से मंगाए गए और कई कलाकार भी राजस्थान के ही थे।

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5 भाषाओं में सुनाया जाएगा इतिहास

संत रामानुजाचार्य स्वामी मंदिर में दर्शनार्थियों को 5 भाषाओं में ऑडियो गाइड मिल सकेगी। अंग्रेजी, हिंदी, तमिल, तेलुगु सहित एक और भाषा इसमें शामिल की गई है, यहां हर तरह की सुविधा है, जिनमें मंदिर के भीतर रामानुजाचार्य के पूरे जीवन को चित्रों और वीडियो में दिखाया जाएगा। साथ ही दक्षिण भारत के प्रसिद्ध 108 दिव्य देश की रेप्लिका (भगवान विष्णु के मंदिर) भी इस स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी (Statue of Equality) के चारों ओर बनाई जा रही है। स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी डिजाइन करने वाले आर्किटेक्ट और दक्षिण भारतीय फिल्मों के आर्ट डायरेक्टर आनंद साईं ने बनाया है। पूज्य चिन्ना जियार स्वामी ने इस पर कई बार मीटिंग की थी।

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जानिये कौन थे संत रामानुजाचार्य स्वामी

वैष्णव संत रामानुजाचार्य स्वामी का जन्म सन 1017 में हुआ था, वे विशिष्टाद्वैत वेदांत के प्रवर्तक थे। उनका जन्म तमिलनाड़ु में ही हुआ था और कांची में उन्होंने अलवार यमुनाचार्य जी से दीक्षा ली थी। श्रीरंगम के यतिराज नाम के संन्यासी से उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली। पूरे भारत में घूमकर उन्होंने वेदांत और वैष्णव धर्म का प्रचार किया। उन्होंने कई संस्कृत ग्रंथों की भी रचना की। उसमें से श्रीभाष्यम और वेदांत संग्रह उनके सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ रहे। 120 वर्ष की आयु में 1137 में उन्होंने देहत्याग किया। संत रामानुजाचार्य स्वामी पहले संत थे, जिन्होंने भक्ति, ध्यान और वेदांत को जाति बंधनों से दूर रखने की बात की और धर्म, मोक्ष और जीवन में समानता की पहली बात करने वाले संत रामानुजाचार्य स्वामी ही थे।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया
स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी को देश के नाम समर्पित

बसंत पंचमी के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने शनिवार शाम को हैदराबाद के रामनगर पहुंचकर संत रामानुजाचार्य स्वामी Sant Ramanujacharya Swami) की स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी का लोकार्पण कर देश को समर्पित किया। स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी Statue of Equality) अष्टधातु से बनी दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा है। पीएम मोदी (PM Modi) ने पाटनचेरु में आईसीआरआईएसएटी (ICRISAT) की 50 वीं वर्षगांठ समारोह का शुभारम्भ किया। पीएम मोदी ने ICRISAT परिसर में प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया। उन्होंने पौधा संरक्षण पर ICRISAT के जलवायु परिवर्तन अनुसंधान केंद्र और ICRISAT की रैपिड जनरेशन एडवांसमेंट केंद्र का भी उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री मोदी ने ICRISAT के विशेष रूप से डिजाइन किए गए प्रतीक चिह्न का भी अनावरण किया और इस अवसर पर एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया।

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Dharmendra Bhati

मैं धर्मेंद्र भाटी, DB News24 का Author & Founder हूँ तथा पिछले 22 वर्षो से निरंतर सक्रिय पत्रकारिता के माध्यम राजनितिक, प्रशासनिक, सामाजिक और धार्मिक खबरों की रिपोर्टिंग करता हूँ साथ ही Daily जॉब्स, ज्योतिष, धर्म-कर्म, सिनेमा, सरकरी योजनाओ के बारे में आर्टिकल पब्लिश करता हूँ। हमारा संकल्प है कि नई-नई जानकारियाँ आप तक सरल और सहज भाषा में आप तक पंहुचे। जय हिन्द

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