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महाशिवरात्रि व्रत का महत्व और मनोरथ पूर्ण करने के लिए उपाय

महाशिवरात्रि भगवान शिव और माँ पार्वती के मिलन का महापर्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन महीने में मनाया जाने वाला यह पर्व हिन्दू धर्म में काफी प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है की गंगा स्नान कर भगवान शिव की आराधना करने वाले भक्तो और साधकों को इच्छित फल, धन, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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हिन्दुओं द्वारा पूरी साधना से मनाया जाने वाला यह महापर्व भगवान शिव जी की शादी के लिए प्रसिद्ध है। शास्त्र कहते हैं कि संसार में अनेकानेक प्रकार के व्रत, विविध तीर्थस्नान नाना प्रकारेण दान अनेक प्रकार के यज्ञ तरह-तरह के तप तथा जप आदि भी महाशिवरात्रि व्रत की समानता नहीं कर सकते। अत: अपने हित साधनार्थ सभी को इस व्रत का अवश्य पालन करना चाहिए।

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कुछ खास उपाय

  • भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र ओम नम: शिवाय का निरंतर जाप करने से सभी मनोरथ की प्राप्ति होती है जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए.
  • जो लोग स्वयं का घर बनाने की इच्छा रखते है उन्हे अपनी इच्छा पूर्ति के लिए शिव रुद्राभिषेक – शहद से करना चाहिए
  • जो लोग अनावश्यक शत्रु पीड़ा से परेशान है उन्हे श्याम शिवलिंग का सरसो के तेल से रुद्राभिषेक करना चाहिए
  • संतान प्राप्ति के लिए मक्खन के शिवलिंग बनाकर गंगाजल से रुद्राभिषेक करे
  • परीक्षा मे सफलता प्राप्ति हेतु दूध – भांग मिलाकर शिवजी का पूजन करे
  • जो लोग किसी बीमारी से .परेशान है वे शिवजी का गाय के घी से भगवान शिव का अभिषेक करे
  • व्यापार मे तरक्की के लिए स्फटिक से बने शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करे
  • सभी प्रकार के सुखो की प्राप्ति हेतु पारे के बने शिवलिंग का नित्य पूजन करे
  • जो लोग आर्थिक तंगी से परेशान है वे लोग शिव दरिद्रदहन स्त्रोत का नियमित रूप से पाठ करे
  • जो लोग शनि, राहु , केतु की महादशा से परेशान है वे लोग भगवान शिव का अभिषेक पानी मे काले तिल मिलकर करे
  • पुत्र प्राप्ति के लिए नियमित रूप से सोमवार का व्रत रखे साथ ही शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करे
  • अगर आपके जीवन मे अकारण ही परेशानिया आ रही है तो भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है
  • भगवान शिव को चंदन का इत्र अर्पित करने से अखंड वेभव की प्राप्ति होती है
  • अगर आप मानसिक परेशानियो से परेशान है तो भगवान शिव का अभिषेक दूध मे शक्कर मिलाकर करे
  • भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए नियमित रूप से संध्या के समय रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करे

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द्रव्यों से अभिषेक का फल
  • जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
  • असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।
  • भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें।
  • लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।
  • धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।
  • तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें।
  • रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।
  • ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।
  • सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।
  • प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जाती है।
  • शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।
  • सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है।
  • शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है।
  • पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।
  • गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।
  • पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें।

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भगवान शिव की अर्ध परिक्रमा क्यों

शिवजी की आधी परिक्रमा करने का विधान है। वह इसलिए की शिव के सोमसूत्र को लांघा नहीं जाता है। जब व्यक्ति आधी परिक्रमा करता है तो उसे चंद्राकार परिक्रमा कहते हैं। शिवलिंग को ज्योति माना गया है और उसके आसपास के क्षेत्र को चंद्र। आपने आसमान में अर्ध चंद्र के ऊपर एक शुक्र तारा देखा होगा। यह शिवलिंग उसका ही प्रतीक नहीं है बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड ज्योतिर्लिंग के ही समान है।

”अर्द्ध सोमसूत्रांतमित्यर्थ: शिव प्रदक्षिणीकुर्वन सोमसूत्र न लंघयेत।। इति वाचनान्तरात।”

सोमसूत्र- शिवलिंग की निर्मली को सोमसूत्र की कहा जाता है। शास्त्र का आदेश है कि शंकर भगवान की प्रदक्षिणा में सोमसूत्र का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, अन्यथा दोष लगता है। सोमसूत्र की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि भगवान को चढ़ाया गया जल जिस ओर से गिरता है, वहीं सोमसूत्र का स्थान होता है।

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क्यों नहीं लांघते सोमसूत्र

सोमसूत्र में शक्ति-स्रोत होता है अत: उसे लांघते समय पैर फैलाते हैं और वीर्य? निर्मित और 5 अन्तस्थ वायु के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है। जिससे शरीर और मन पर बुरा असर पड़ता है। अत: शिव की अर्ध चंद्राकार प्रदशिक्षा ही करने का शास्त्र का आदेश है।

तब लांघ सकते हैं- शास्त्रों में अन्य स्थानों पर मिलता है कि तृण, काष्ठ, पत्ता, पत्थर, ईंट आदि से ढके हुए सोम सूत्र का उल्लंघन करने से दोष नहीं लगता है। लेकिन शिवस्यार्ध प्रदक्षिणा का मतलब शिव की आधी ही प्रदक्षिणा करनी चाहिए।

किस ओर से परिक्रमा

भगवान शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बांई ओर से शुरू कर जलाधारी के आगे निकले हुए भाग यानी जल स्रोत तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें।
हर हर महादेव…

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पण्डित नरेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य एवम अनुष्ठानकर्ता

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Dharmendra Bhati

मैं धर्मेंद्र भाटी, DB News24 का Author & Founder हूँ तथा पिछले 22 वर्षो से निरंतर सक्रिय पत्रकारिता के माध्यम राजनितिक, प्रशासनिक, सामाजिक और धार्मिक खबरों की रिपोर्टिंग करता हूँ साथ ही Daily जॉब्स, ज्योतिष, धर्म-कर्म, सिनेमा, सरकरी योजनाओ के बारे में आर्टिकल पब्लिश करता हूँ। हमारा संकल्प है कि नई-नई जानकारियाँ आप तक सरल और सहज भाषा में आप तक पंहुचे। जय हिन्द

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