जन्म कुंडली के 9वे घर को नवम भाव कहते है..
नवम भाव से भाग्य की उन्नति, ईश्वर कृपा, धर्म, अध्यात्म, उच्च शिक्षा, पौत्र तथा पुत्र की प्राप्ति, दूसरी पत्नी, पत्नी का छोटा भाई, छोटे भाई की पत्नी, छोटी बहन का पति, लंबी यात्रा, राज्य कृपा (कुछ लोग नवम भाव को पिता का भाव भी मानते हैं), नितम्ब, जांघ इत्यादि के बारे में विचार किया जाता है। नवम भाव से ना रोजगार देखा जाता है, ना आमदनी देखी जाती है परंतु फिर भी उसका बहुत ज्यादा महत्व है।
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दशम भाव से जब नवम भाव का संबंध शुभ भाव में बनता है तभी राजयोग का निर्माण भी होता है। यदि किसी व्यक्ति का नवम भाव (भाग्य) प्रबल रहता है तो वह जीवन में जो भी कार्य करता है उसमें उसको कम परिश्रम में ज्यादा सफलता प्राप्त होती है । और जिस व्यक्ति का भाग्य कमजोर होता है उस व्यक्ति को किसी काम को करने के लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है संघर्ष करना पड़ता इसलिए इसका इतना महत्व है।
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दूसरी बात इस संसार में जानवर और इंसान दोनों भोजन करते हैं बच्चे पैदा करते हैं और मर जाते हैं। परंतु इंसान एक ऐसा जीव है जो ईश्वर की आराधना कर सकता है। जिस व्यक्ति का नवम भाव की स्थिति अच्छी होती है ऐसे व्यक्तियों को ईश्वरीय शक्ति प्राप्त होती है एवं पूजा पाठ साधना अध्यात्म में ज्यादा रुचि रहती है। जिसने जीवन में सारे कर्म किए हैं परंतु ईश्वर की आराधना नहीं कि वह एक जानवर ही है चाहे भले ही शरीर इंसान का मिल गया हो इसलिए भी नवम भाव का बहुत ज्यादा महत्व है।
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कुंडली में द्वितीय भाव से प्रारंभिक शिक्षा देखी जाती है। पंचम भाव से माध्यमिक शिक्षा देखी जाती है एवं नवम भाव से उच्च शिक्षा देखी जाती है। यदि किसी व्यक्ति को उच्च शिक्षा ही प्राप्त नहीं होगी तो जीवन में उच्च पद कैसे प्राप्त होगा। डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर कैसे बनेंगे, इसलिए इसका महत्व बहुत ज्यादा है।
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पिता के सुख के लिए नवम भाव एवं दशम भाव दोनों को देखा जाता है। मेरे अनुभव में दशम भाव पिता के सुख के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण लगता है। (आप लोग भी इस पर शोध करें और समझें तथा अपना अनुभव साझा करें) देवकेरल (ज्योतिष के विद्वान) कहते है यदि पंचम भाव एवं पंचमेश निर्बल ही क्यों ना हो यदि नवम भाव बलवान है और गुरु से दृष्ट है तो अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है।
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नवम भाव से अपने देश में ही दूर की यात्रा के बारे में विचार किया जाता है। नवमेश की महादशा हो और लग्नेश की अंतर्दशा हो तो राज्य की ओर से कृपा तथा धन की प्राप्ति का योग भी बनता है। नवमेश यदि द्वादश भाव में विराजमान हो तो ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय जन्म स्थान से बहुत दूर या बाहरी स्थानों के संपर्क से होता है। जिन लग्नों में नवमेश अष्टम भाव, षष्ठ भाव या द्वादश भाव का भी स्वामी होता है, उन कुंडलियों में नवमेश दशम भाव के साथ संबंध स्थापित करके राजयोग का निर्माण नहीं करता है।
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