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टाईम कीपर को फायर ऑफिसर की बत्ती लगी गाड़ी

– ना मैकेनिकल ना ही फायर कॉल का अनुभव फिर भी प्रभारी फायर ऑफिसर

उज्जैननगर निगम फायर ऑफिसर (fire officer) की बत्ती वाली गाड़ी में इन दिनों टाईम कीपर कम प्रभारी फायर ऑफिसर (fire officer) राजेश तिवारी घूम रहे है, जबकि इन्हें ना तो मैकेनिकल अनुभव है, ना ही फॉयर कॉल का अनुभव है, उसके बाद भी महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जो इन दिनों नगर निगम के गलियारों में चर्चाओं में है। जबकि दो माह में आधा दर्जन आग लग चुकी है, लेकिन इनके द्वारा लॉकबुक भी नही भरवाई जा रही है, केवल शव वाहन और वॉटरलॉरी के वाहनों की लॉकबुक भरी जा रही है।

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आडिट विभाग से जुड़े सूत्रों की माने तो राजेश तिवारी जिनका मूल पद टाईम कीपर है, उन्हें ना तो प्रभारी फायर ऑफिसर (fire officer) बनाया जा सकता है, ना ही वर्दी पहनने का अधिकार है, इतना ही नही राजेश तिवारी फायर ऑफिसर (fire officer) की जिस बोलेरो में घूम रहे है, उसका भी इस्तेमाल इन्हें करने का अधिकार नही है। लेकिन कहते है ना जब खुद मेहरबान तो फिर… कुछ यहीं हाल इन दिनों नगर निगम के फॉयर बिग्रेड विभाग का है।

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पड़ौसी जिलों से लेना पड़ी मदद

कहते है ना कि जिसे अनुभव नही हो, अगर उसे सत्ता सौंप दी जाये तो फिर बिगाड़ा निश्चित है, ऐसा ही हाल फॉयर बिग्रेड विभाग का है। दो माह से स्वयं को प्रभारी फायर ऑफिसर (fire officer) बता रहे टाईम कीपर राजेश तिवारी को कितना अनुभव है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ दिनों पहले नागझिरी स्थित ओमकार कैमिकल्स पर आग लगी थी, जिस पर काबू करने के लिए नागदा से दो, देवास से दो और इंदौर से एक फायर फायटर बुलाया गया था। जबकि उज्जैन नगर निगम के फायर बिग्रेड (fire brigade) में ही लगभग 15 गाड़िया है। संभाग मुख्यालय पर होने के बाद तहसील और अन्य जिलों से फॉयर फाइटर बुलाना ही उनके अनुभवहिनता को दर्शाता है।

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अनुभव की कमी, लेकिन सांठगांठ तगड़ी

फायर बिग्रेड (fire brigade) से जुड़े सूत्रों की माने तो टाईम कीपर राजेश तिवारी को भले ही मैन्टनेंस, फॉयर कॉल का अनुभव नही है, लेकिन उनकी सेटिंग काफी तगड़ी है, तभी को तात्कालीन आयुक्त महेशचंद्र चौधरी द्वारा दिये गये जांच के आदेश फाईलों में बंद हो गये, वहीं आधा दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण विभागों का प्रभारी भी इन्हें बना दिया गया। सूत्रों की माने तो प्रभारी फायर ऑफिसर राजेश तिवारी को यह तक पता नही है कि कौन सी गाड़ी कितना एवरेज देती है, किसमें कितना डीजल भराया जाता है। यहीं कारण है कि एक वाहन पिछले कई दिनों से कंपनी के शोरूम पर ही पड़ा है, क्योंकि उसमें हुए महज 25-35 हजार का खर्च का बिल नही चुकाया गया है।

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Dharmendra Bhati

मैं धर्मेंद्र भाटी, DB News24 का Author & Founder हूँ तथा पिछले 22 वर्षो से निरंतर सक्रिय पत्रकारिता के माध्यम राजनितिक, प्रशासनिक, सामाजिक और धार्मिक खबरों की रिपोर्टिंग करता हूँ साथ ही Daily जॉब्स, ज्योतिष, धर्म-कर्म, सिनेमा, सरकरी योजनाओ के बारे में आर्टिकल पब्लिश करता हूँ। हमारा संकल्प है कि नई-नई जानकारियाँ आप तक सरल और सहज भाषा में आप तक पंहुचे। जय हिन्द

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