धर्म

जन्म कुंडली में पांचवें घर को पंचम भाव कहते है

पंचम भाव से पेट, गर्भ, संतान, विद्या, बुद्धि, वाणी, इष्ट देव, मंत्रणा शक्ति, प्रेम, प्रतियोगी परीक्षा, लेखन शक्ति इत्यादि के बारे में विचार किया जाता है। पंचम भाव का कारक गुरु (बृहस्पति) को माना गया है। जब कुंडली में पंचम भाव का स्वामी एवं गुरु कमजोर या पीड़ित हो जाए तो इनसे संबंधित सुख में कमी एवं परेशानी होती है। यदि सिर्फ एक ही चीज कमजोर या पीड़ित हो तो ज्यादा कमी या परेशानी नहीं होती है।

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इष्ट देव का विचार पंचम भाव से किया जाता है। पंचम भाव के स्वामी से संबंधित देवता को इष्ट माना जाता है। जैसे सूर्य-विष्णु जी, चंद्र-शिव जी, मंगल-हनुमान जी, बुध-दुर्गा जी या गणेश जी, गुरु-ब्रह्मा जी, शुक्र-लक्ष्मी जी, शनि-भैरव जी (ग्रहों से संबंधित देवताओं में अलग अलग लोगों का अलग अलग मत है इसलिए कोई आवश्यक नहीं है कि मेरे द्वारा बताए गए देवता को हीं माने) परंतु मेरा विचार है की अपना इष्ट परम पिता परमेश्वर को मानना चाहिए जो ईश्वर है और गृहस्थ व्यक्ति को सभी देवताओं की आराधना करनी चाहिए क्योंकि सभी देवताओं से संबंधित शक्ति हमें चाहिए। ईश्वर और देवता में अंतर है ईश्वर को अंग्रेजी में God कहते हैं और देवताओं को अंग्रेजी में Lord कहते हैं। ईश्वर सभी धर्मों का एक हैं होता है, परंतु देवता सभी धर्मों के अलग-अलग होते हैं। यदि पंचम भाव बली हो शुभ हो तो दूसरों को मार्गदर्शन करने की योग्यता अच्छी होती है।

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संतान- पंचम भाव पर सूर्य और मंगल का प्रभाव हो तो गर्भ नाश करता है विशेष शत्रु राशि हो, परंतु दूसरे शुभ ग्रहों की दृष्टि से इसमें कमी भी आती है। इस स्थान में बलवान चंद्र अधिक कन्याओं की उत्पत्ति करता है। बुध एवं शनि के पंचम में होने से पुत्र प्राप्ति में विलंब होती है क्योंकि दोनों ठंडे तथा नपुंसक ग्रह हैं। गुरु इस स्थान में संतान के लिए शुभ नहीं होता है एवं बड़े पुत्र से मतभेद करता है। गुरु इस स्थान में तभी शुभ फल प्रदान करता है जब पापयुक्त, पापदृष्टय या निर्बल ना हो। शुक्र इस स्थान में पुत्र पुत्रियां दोनों देता है। राहु और केतु संतान संबंधी परेशानी देते हैं। (एक ही ग्रह के फलादेश को आखिरी निर्णय ना मानें। दूसरे ग्रहों की दृष्टि फलादेश में परिवर्तन भी कर देती है।)

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प्रेम विवाह- पंचम स्थान प्रेमी प्रेमिका का होता है जब इस भाव का संबंध सप्तम भाव या उसके स्वामी से होता है तो प्रेम विवाह होने की संभावना ज्यादा रहती है। प्रेम विवाह के और भी कई योग होते हैं। प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने के लिए पंचम भाव की स्थिति अच्छी होनी चाहिए।

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राजयोग- नवम से नवम होने के कारण पंचम भाव शुभता में श्रेष्ठ होता है चतुर्थ भाव के स्वामी से पंचमेश का संबंध केंद्र या त्रिकोण में राजयोग व धन देने वाला होता है। पंचमेश एवं दशमेश के संबंध को भी राजयोग जैसा माना जाता है (पंचमेश या चतुर्देश, दशमेश की दूसरी राशि अच्छे भाव में होनी चाहिए) कुंडली के पंचम भाव से और भी परिवार के विषय में सामान्य जानकारी प्राप्त किया जा सकता है। पिता की आयु का भाव होता है। बड़े भाई बहन के जीवन साथी का भाव होता है। जीवनसाथी के आमदनी का भाव होता है, इत्यादि।

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पण्डित नरेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य एवम अनुष्ठानकर्ता

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Dharmendra Bhati

मैं धर्मेंद्र भाटी, DB News24 का Author & Founder हूँ तथा पिछले 22 वर्षो से निरंतर सक्रिय पत्रकारिता के माध्यम राजनितिक, प्रशासनिक, सामाजिक और धार्मिक खबरों की रिपोर्टिंग करता हूँ साथ ही Daily जॉब्स, ज्योतिष, धर्म-कर्म, सिनेमा, सरकरी योजनाओ के बारे में आर्टिकल पब्लिश करता हूँ। हमारा संकल्प है कि नई-नई जानकारियाँ आप तक सरल और सहज भाषा में आप तक पंहुचे। जय हिन्द

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