धर्म
वक्री बृहस्पति और उसके परिणाम जानिये पंडित नरेंद्र शर्मा से

इस लेख में बात करते है वक्री बृहस्पति की…
वक्री बृहस्पति होना भी कई मायनों में फायदे मंद तो कभी कभी इसके दुष्परिणाम भी होते है। आईये हम आपको बता रहे है वक्री बृहस्पति क्या होता है और उसके परिणाम क्या-क्या आप पर हो सकते है। लेकिन यह तय करता है कि वक्री बृहस्पति आपकी कुंडली के किस भाव में विराजमान है। अगर फिर भी आपके मन में कोई शंका या प्रश्न हो अथवा किसी अन्य विषय पर मन में कोई प्रश्न हो तो आप पंडित नरेंद्र शर्मा से चर्चा कर सकते है।
प्रथम भाव:
- बृहस्पति प्रथम भाव लग्न स्थान में वक्री हो तो व्यक्ति विद्वान और विशेष पूजनीय होता है।
- स्वस्थ और सुंदर शरीर का मालिक होता है।
- सार्वजनिक जीवन में ऐसा व्यक्ति बहुत सम्मान प्राप्त करता है, लेकिन दूसरी ओर कई मामलों में सही न्याय करने से चूक जाता है।
- अपने प्रिय के प्रति पक्षपाती हो जाता है और दूसरों के प्रति ईमानदारी नहीं बरत पाता।
द्वितीय भाव:
- वक्री बृहस्पति द्वितीय भाव में है तो व्यक्ति लापरवाहीपूर्ण खर्च करता है। इन्हें पैतृक संपत्ति प्राप्त होती इसलिए वह उसका महत्व नहीं समझ पाता और अंधाधुंध खर्च करता है।
- यदि द्वितीय भाव में वक्री बृहस्पति के साथ शुक्र हो तो व्यक्ति आलीशान जीवनशैली, लग्जरी घर और आभूषणों का शौकीन होता है। बोलने में कुशल, वाकपटु, दानी और उदार होता है। पत्नी से सुख मिलता है।
तृतीय भाव:
- जिन जातक की कुंडली के तीसरे घर में वक्री बृहस्पति है तो उसका मिलाजुला प्रभाव समझना चाहिए। ऐसा व्यक्ति स्वयं के प्रयासों से उच्च पदों तक पहुंचता है।
- शिक्षा के क्षेत्र में प्रारंभ में लापरवाह किंतु बाद में उच्च स्तर तक पहुंचता है। धन संचय भी खूब करता है, लेकिन अत्यधिक धन और उच्च पद पर पहुंचते ही ये अहंकारी हो जाते हैं और दूसरों का अपमान करते हैं। अन्यायी हो जाते हैं।
चतुर्थ भाव:
- चौथे भाव में बैठा वक्री बृहस्पति व्यक्ति को घमंडी बना देता है। ऐसा व्यक्ति अपने परिवार और समाज के प्रति उदार नहीं रहता।
- दूसरों के बारे पूर्वाग्रह रखकर चलता है और मन ही मन कई लोगों से दुश्मनी पाल बैठता है। ये लोग यदि अपना व्यवहार बदल लें तो फिर उनके लिए जीवन में कुछ भी पाना असंभव नहीं। धन, सम्मान, यश, कीर्ति हासिल कर सकते हैं।
पंचम भाव:
- बृहस्पति वक्री होकर पंचम स्थान में बैठा है तो व्यक्ति को अपने बच्चों के प्रति अधिक लगाव नहीं होता। ऐसा व्यक्ति अपनी पत्नी के अलावा कई स्त्रियों से शारीरिक संबंध बनाता है। पंचम वक्री गुरु संतानसुख में भी बाधक होता है।
- यदि पंचम स्थान में बृहस्पति कुंभ या कर्क राशि में हो तो व्यक्ति को संतान नहीं होती। मीन में हो तो कम संतति होती है। धनु में हो तो बहुत कष्टों के बाद संतान होती है। हालांकि पंचमस्थ वक्री गुरु वाला व्यक्ति अपने वर्ग का मुखिया, धनी व सरकारी क्षेत्र में प्रभावशाली व्यक्ति होता है।
षष्ठम भाव:
- छठे स्थान में वक्री गुरु है तो व्यक्ति बलवाल, शक्तिशाली और शत्रुओं को परास्त करने वाला होता है। व्यवसाय की अपेक्षा नौकरी में अधिक लाभ होता है। ऐसे लोग स्वास्थ्य विभाग में उच्च पदों तक पहुंचते हैं।
- छठे वक्री गुरु वाले लोग स्वयं के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होते हैं। ऐसे लोग ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, लिवर संबंधी रोगों से पीड़ित होते हैं।
सप्तम भाव:
- सप्तमस्थ वक्री वाले जातकों का विवाह के बाद भाग्योदय होता है। जीवनसाथी उच्चकुल, धनवान, परोपकारी और सुख देने वाला मिलता है। मेष, सिंह, मिथुन या धनु राशि में गुरु हो तो उच्च शिक्षा, कुंभ का गुरु हो तो पुत्र संतान की चिंता रहती है।
- वृषभ, कन्या, कर्क, वृश्चिक या मीन राशि का गुरु हो तो व्यक्ति अत्यंत महत्वाकांक्षी होता हे। तुला या मकर का गुरु हो तो दो पत्नी या अन्य स्त्री से संबंध का सूचक है।
अष्टम भाव:
- आठवें घर में वक्री गुरु हो तो व्यक्ति तंत्र-मंत्र, काले जादू की दुनिया का बादशाह बनता है।
- ऐसे व्यक्ति को दुर्घटना में मृत्यु का भय रहता है। अष्टम वक्री गुरु शुभ ग्रहों के साथ बैठा हो तो व्यक्ति को पैतृक धन प्राप्त होता है। ऐसा व्यक्ति बड़ा ज्योतिषी, मंत्र शास्त्री, विद्वान व धनवान बनता है।
नवम भाव:
- वक्री बृहस्पति नवम स्थान में हो तो व्यक्ति चार मंजिला भवन या चार भवनों का स्वामी होता है। राजा तथा सरकार के उच्चाधिकारियों से घनिष्ठता होती है। ऐसे व्यक्ति धर्मभीरू भी देखे गए हैं।
- अपनी मनपसंद बात न हो तो ऐसे व्यक्ति जल्दी क्रोधित हो जाते हैं और अपनी मन की करने के लिए कुछ भी कर जाते हैं।
दशम भाव:
- दशम वक्री गुरु वाले व्यक्ति की प्रतिष्ठा अपने पिता, दादा से ज्यादा होती है। ऐसा व्यक्ति धनी और राजा का प्रिय होता है।
- दूसरी हो दशम भाव में वक्री गुरु वाले जातक की विभिन्न विरोधी गतिविधियां इनके विकास में बाधक होती है। गैर जिम्मेदारी पूर्ण हरकतें और कमजोर निर्णय क्षमता के कारण ये कई मौके गंवा बैठते हैं।
नवम भाव:
- वक्री बृहस्पति नवम स्थान में हो तो व्यक्ति चार मंजिला भवन या चार भवनों का स्वामी होता है। राजा तथा सरकार के उच्चाधिकारियों से घनिष्ठता होती है। ऐसे व्यक्ति धर्मभीरू भी देखे गए हैं।
- अपनी मनपसंद बात न हो तो ऐसे व्यक्ति जल्दी क्रोधित हो जाते हैं और अपनी मन की करने के लिए कुछ भी कर जाते हैं।
दशम भाव:
- दशम वक्री गुरु वाले व्यक्ति की प्रतिष्ठा अपने पिता, दादा से ज्यादा होती है। ऐसा व्यक्ति धनी और राजा का प्रिय होता है।
- दूसरी हो दशम भाव में वक्री गुरु वाले जातक की विभिन्न विरोधी गतिविधियां इनके विकास में बाधक होती है।
- गैर जिम्मेदारी पूर्ण हरकतें और कमजोर निर्णय क्षमता के कारण ये कई मौके गंवा बैठते हैं।
एकादश भाव:
- 11वें भाव में वक्री गुरु हो तो व्यक्ति लगातार आगे बढ़ने का प्रयास करता है, लेकिन अपने से निम्न वर्ग के लोगों से मित्रता के कारण इनका जीवनस्तर सामान्य ही बना रहता है। ऐसे व्यक्तियों की सोच भी छोटी होती है।
- शराबी, व्यसनी लोगों से दोस्ती के कारण ये धन भी बर्बाद करते हैं।
द्वादश भाव:
- 12वें भाव में वक्री गुरु वाले जातक शुभ कार्यों में पैसा लगाते हैं। इनके गुप्त शत्रु सदा इन्हें बदनाम करने का प्रयास करते रहते हैं, लेकिन इनकी रक्षा होती है।
- इन्हें आगे बढ़ने के कई अवसर आते हैं लेकिन अवसरों को नहीं पहचान पाने के लिए कारण मौके हाथ से छूट जाते हैं। कई बार व्यर्थ के कार्यों में समय नष्ट करते हैं।
इसके कहते है आजिविका योग…
- लग्न या चंन्द्र से दशम भाव में सुर्य हो या दशमेश सुर्य के नवमांश में हो तो जातक राज्य के व्यवसाय, सरकारी ठेका, सोना, औषधी से धन लाभ
- दशम भाव में चन्द्र या दशमेश चंद्र के नक्षत्र मे हो तो, दुध, मिठाई, क्रीम पावडर व्ययसाय, कला कौशल,जल वगैरह से धन लाभ।
- दशम भाव में मंगल हो या दशमेश मंगल के नवमांश में हो तो खेल, सेना, पुलिस, भुमिभवन, धातुकर्म वगेरैह से धन लाभ
- दशम में बुध हो या दशमेश बुध के नवमांश में हो तो बैंक, गणना, ज्योतिष, लिपीक, व्याख्याता, वकीलात, लेखन संपादन से धन लाभ
- दशम में गुरु हो तो या दशमेश गुरु के नवमांश में हो तो धर्म कर्म पुजा उपासना, शिक्षा न्यायाधीश, वकालत, ज्योतिष बेंक, लेन-देन व्यापार से लाभ
- दशम में शुक्र या दशमेश शुक्र के नवमांश में हो तो साहित्य संगीत, चित्रकला, मनोरंजन, नृत्य-नाटक फिल्म, आकाश वाणी वाहन व्ययसाय से लाभ
- दशम में शनि हो या दशमेश शनि के नवमांश में होतो लोहा पेट्रोल, डीजल, व्यापार, धातु से धन-लाभ मिलता है।
जय श्री महाकाल, आपके मन में कोई शंका या प्रश्न हो मुझसे कुछ छूट गया हो अथवा किसी अन्य विषय पर मन में कोई प्रश्न हो तो आप मुझे मेरे नंबर 7692849650 पर कॉल करें या व्हाट्सप्प करें । मैं कोशिश करूँगा आपके सवालो के जवाब देने का और उस विषय पर अलग से लेख लिखने का ।
पण्डित नरेंद्र शर्मा
ज्योतिषाचार्य एवम अनुष्ठानकर्ता