श्रावण मास की पहली सवारी: चांदी की पालकी सवार होकर निकले राजाधिराज महाकाल
उज्जैन। श्रावण माह के पहले सोमवार को श्री महाकालेश्वर मंदिर से भगवान महाकाल की पहली सवारी निकलेगी। मंदिर की परंपरा अनुसार दोपहर 3.30 बजे सभामंडप में भगवान के मनमहेश रूप का पूजन-अर्चन किया गया। श्री महाकालेश्वर मंदिर परिसर से शाम 4 बजे शाही ठाठबाट के साथ अवंतिकानाथ की पालकी नगर भ्रमण के लिए रवाना हुई। सवारी रवाना होने के पहले भगवान के मनमहेश स्वरूप का पूजन नवनिर्वाचित महापौर मुकेश टटवाल, कलेक्टर आशीरष सिंह ने किया। इसके बाद भगवान की प्रतिमा को पालकी में विराजित करने के बाद नगर भ्रमण के लिए रवाना किया।
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इन मार्गों से गुजरी बाबा महाकाल की सवारी
सवारी महाकाल मंदिर से प्रारंभ होकर महाकाल घाटी, गुदरी चौराहा, बक्षी बाजार, कहारवाड़ी से होकर मोक्षदायिनी शिप्रा के रामघाट पहुंची। यहां भगवान का शिप्रा जल से अभिषेक कर पूजा-अर्चना के पश्चात सवारी रामानुजकोट, गणगौर दरवाजा, कार्तिक चौक, जगदीश मंदिर, सत्यनारायण मंदिर, ढाबा रोड, छत्रीचौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार होते हुए पुन: मंदिर पहुंची। पांच किमी लंबे सवारी मार्ग पर तीन घंटे तक भक्ति का उल्लास छाएगा। अवंतिका नाथ के स्वागत के लिए प्रजा ने पलक पावड़े बिछा दिए।
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चांदी की पालकी सवार थे मनमहेश
श्रावण मास की पहली सवारी पर सोमवार को प्रजा वत्सल भगवान महाकाल मनमहेश रूप में चांदी की पालकी में सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकले। मंदिर के मुख्य द्वार पर सशस्त्र बल की टुकड़ी राजाधिराज को सलामी दी। इसके बाद पालकी शिप्रा तट की ओर रवाना हुई। सवारी में सबसे आगे अश्वारोही दल, पुलिस बैंड, नगर सैनिक तथा सशस्त्र बल की टकड़ी मार्च पास्ट करते हुए चले।
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सभा मंडप में हुई संध्या पूजा
श्रावण के पहले सोमवार को सवारी की तैयारी के कारण प्रतिदिन शाम 5 बजे होने वाली संध्या पूजा सोमवार को दोपहर 3 बजे हुई। शाम 7 बजे होने वाली संध्या पूजा पालकी के मंदिर पहुंचने पर की गई। सभा मंडप में पूजन के समय भीड़ को नियंत्रित करने के लिए केवल मंदिर तथा सुरक्षा कर्मचारी तथा पुजारी-पुरोहित को ही मौजूद रहने की अनुमति थी। इसके बाद भी अन्य लोगों के सभामडंप में पहुंचने के कारण धक्का-मुक्की भी होती रही।
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बाबा की झलक पाने को उमड़ा जन सैलाब
बाबा महाकाल की सवारी देखने को देशभर के श्रद्धालु यहां पहुंचे थे। यही कारण है कि शाम को सवारी के दौरान महाकाल मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पूरी तरह से जाम हो चुके थे। सभी रास्तों पर श्रद्धालुओं की भीड़ दिखाई दे रही थी। कुछ अव्यवस्था पुलिस द्वारा कई लगाए गए बेरिकेट्स के कारण भी होती रही। यही हालत नदी पर सवारी के पहुंचने के दौरान हुई। नदी के दोनो छोर पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। श्री महाकालेश्वर मंदिर में श्रावण मास के पहले सोमवार को भक्तों का सैलाब उमड़ा। सावन में शिव की भक्ति और आराधना का विशेष महत्व होता है। यही कारण है कि श्रावण के पहले ही सोमवार को हजारों श्रद्धालु बाबा महाकाल के दर्शन पहुंचे थे।
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बाबा महाकाल को भस्म रमाई
भस्म आरती के लिए भक्त रात 12 बजे से ही लाइन में आकर खड़े हो गए थे। तड़के सुबह 2:30 बजे मंदिर के पट खुले। भगवान महाकाल का जल से अभिषेक करने के पश्चात मंदिर के पुजारियों ने दही दूध पंचामृत से अभिषेक किया। श्री पंचायती महानिवार्णी अखाड़ा की ओर से बाबा महाकाल को भस्म रमाई गई। उसके बाद पुजारियों ने भांग और सूखे मेवे से श्रृंगार करने के बाद तड़के सुबह होने वाली दिव्य आरती शुरू हुई। मंदिर प्रशासन द्वारा की गई व्यवस्था से भस्म आरती के दौरान हजारों श्रद्धालुओं ने चलते हुए भगवान महाकालेश्वर के दर्शन लाभ लिए।
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सुबह कैलाश तो दोपहर में साधनासिंह पहुंची
श्रावण सोमवार होने से भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी सुबह श्री महाकालेश्वर मंदिर पहुंचकर भगवान के दर्शन किए। वहीं दोपहर में मुख्यमंत्री क ी धर्मपत्नी साधना सिंह ने भी मंदिर पहुंचकर पूजन किया। दिनभर कई प्रशासनिक अधिकारियों ने भी बाबा महाकाल के दर्शन किए।
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बारिश में भी कम नही हुई आस्था
सोमवार सुबह से ही रिमझिम बारिश का दौर शुरू हो गया था। बारिश के बाद भी श्रद्धालुओं की आस्था कायम रही। भस्म आरती के बाद लाइन में लगे हजारों श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए छोड़ा गया। सामान्य श्रद्धालुओं की लाइन चारधाम मंदिर की ओर से लगी थी। यहां से बेरिकेट्स के माध्यम से श्रद्धालु शंख द्वार से अंदर प्रवेश कर कार्तिकेय मंडपम से भगवान को जल अर्पित कर गणेश मंडपम से दर्शन करते हुए निर्गम द्वार की ओर रवाना हो गए। भगवान महाकाल के आंगन में श्रावण सोमवार को दिनभर श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन के लिए रही।
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मंदिर की ओर जाने वाले कई रास्ता बंद
बाहर के श्रद्धालु महाकाल मंदिर में महाकाल घाटी और थाने के पास मंदिर जाने के लिए पहुंचे तो पता चला कि श्रद्धालुओं की लाइन चारधाम मंदिर से लगी है। ऐसे में श्रद्धालु परेशान होते रहे। कारण था कि बड़ा गणेश मंदिर की ओर से श्रद्धालुओं को हरसिद्धी की ओर जाने वाले मार्ग पर रोक देने से लंबा मार्ग घूमकर वापस चारधाम मंदिर पहुंचने में ही श्रद्धालुओं को एक से डेढ़ घंटा का समय लग गया। खास बात यह है कि श्रद्धालुओं को सही सूचना पहुंचाने में कमी रही। बाहरी श्रद्धालुओं को पुराने मार्ग की जानकारी थी।
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