उज्जैन। बुध्दि, ज्ञान, विद्या, कला और संगीत की देवी वाग्देवी शारदा वीणा वादनी मां सरस्वती का पर्व बसंत पंचमी 14 फरवरी 2024 को शिशिर ऋतु समाप्ति काल माघ मास शुक्ल पक्ष पंचमी बुधवार को रेवती नक्षत्र शुभ योग में मनाया जाएगा।
मातंगी ज्योतिष केंद्र के ज्योतिर्विद पंडित अजय शंकर व्यास के अनुसार बसंत ऋतु पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त 14 फरवरी को प्रात: उदय तिथि दिन पर्यन्त तक रहेगी। प्रात: 07.13 से 08.54 तक अभिजीत दोपहर 12.16 से 12.40 रहेगा। आधुनिक एवं स्थानीय पंचांग सहित श्रेष्ठ मां सरस्वती नोका नाव पर आ रही है। कार्य सिद्धि, समृद्धि, सफलता के लिए रेवती नक्षत्र शुभ लक्ष्मीप्रदा शुभ लाभ योग में योगानुसार शुभ या मंगल कार्य कर सकते हैं।
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अबुझ मुहूर्त में होंगे शुभ कार्य
ज्योतिर्विद पंडित अजय शंकर व्यास के अनुसार प्रत्येक कार्य के लिए अलग अलग योग का निर्धारण किया गया है। शुभ योग में यात्रा करना, गृह प्रवेश, नवीन कार्य प्रारंभ करना, विवाह आदि करना शुभ होता है। मां सरस्वती को ज्ञान और विद्या की देवी कहा जाता है। बसंत पंचमी के दिन को अबूझ मुहूर्त पर उनकी पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन शिक्षा परिक्षा आरंभ करना भी काफी शुभ माना जाता है। इसलिए इस दिन विद्यारंभ संस्कार किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन बसंत ऋतु आगमन पर शिक्षा आरंभ करने से व्यक्ति बुद्धिमान और ज्ञानी बनता है। इसके अलावा मां सरस्वती को संगीत और कला की जननी भी माना जाता है। इसलिए किसी भी संगीत या कला की शिक्षा शुरू करने से पहले हमेशा उनकी पूजा की जाती है।
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मां सरस्वती का प्रकट उत्सव
पुराणों मतानुसार ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्कंद पुराण, गणेश पुराण, विष्णु पुराण, देवी भागवत पुराण,शिव पुराण, कालिका पुराण, तंत्र चुरामणी, सरस्वती उपपुराण, एवं अन्य सभी पुराण, रामायण, महाभारत, वेद, उपनिषद में बसंत पंचमी को मां सरस्वती का प्रकट उत्सव बताया गया है। वैदिक ज्योतिष गणनानुसार बसंत पंचमी, नवरात्रि मुख्यत: सातवें दिन, श्रावण मास के बुधवार को इनकी पूजा होती है।
मां सरस्वती विद्या-संगीत और कला की जननी
पंडित अजय शंकर व्यास ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। लेकिन वह परेशान थे कि उनकी सारी रचना शांत और मृत शरीर के समान थी, क्योंकि ब्रह्माण्ड में कोई ध्वनि और संगीत नहीं था। ऐसे में ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें अपनी परेशानी के बारे में बताया। भगवान विष्णु ने ब्रह्मा को सुझाव दिया कि देवी मां सरस्वती उनकी मदद करेंगी और समस्या का समाधान करेंगी।
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भगवान ब्रह्मा ने देवी सरस्वती का आह्वान किया। जब वह प्रकट हुईं और ब्रह्मा जी के अनुरोध पर उन्होंने अपनी वीणा से ब्रह्मा की रचना को जीवन प्रदान किया। जब उन्होंने वीणा बजाना शुरू किया तो पहला अक्षर ह्णसाह्ण निकला, जो वर्णमाला सात संगीत सुरों (सात स्वरों) में से पहला है। इस प्रकार ध्वनि रहित ब्रह्माण्ड को ध्वनि प्राप्त हुई। इससे भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए और उन्होंने सरस्वती का नाम वागेश्वरी रखा। उसके हाथ में वीणा है। इसलिए उन्हें ह्णवीणापाणिह्णभी कहा जाता है।
देवी मां सरस्वती का वाहन हंस
पंडित व्यास के अनुसार जिस प्रकार भगवान शिव का वाहन नंदी, श्री विष्णु का गरुड़, श्री कार्तिकेय का मोर, माँ दुर्गा का सिंह तथा श्रीगणेश का वाहन मूषक यानी चूहा है, उसी प्रकार माँ सरस्वती का वाहन हंस है. माँ सरस्वती को विद्या, बुद्धि तथा कला की देवी माना जाता है।
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ऋतुराज बसंत का उत्सव
ज्योतिष शास्त्र अनुसार जिस प्रकार उत्तरायण दक्षिणायन छह महीने का होता है उसी तरह एक वर्ष में छ: ऋतुएँ मानी गयी हैं। ज्योतिष के अनुसार चैत्रमास से शुरू करते हुए दो-दो मास की एक ऋतु के हिसाब से छ: ऋतुएँ दृ बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद,हेमंत और शिशिरऋतु नाम रखे गए हैं। जिस वर्ष में अधिमास होता है उसमें (कोई) एक ऋतु 90 दिन की मानी गयी है।
वीणा वादिनी के पूजन से सफलता के द्वार खुलते
ज्योतिर्विद पंडित अजय शंकर व्यास के अनुसार हिंदू धर्म में बसंत पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की विधिवत पूजा करने का विधान है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां सरस्वती का अवतरण हुआ था। इस कारण इस दिन बसंत पंचमी के रूप में मनाते हैं। इसके साथ ही इस दिन से बसंत ऋतु भी आरंभ हो जाता है। इस दिन मां सरस्वती की विधिवत पूजा करने साथ मां लक्ष्मी और विष्णु जी की भी पूजा की जाती है।
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बसंत पंचमी पर पूजा और विधि
ज्योतिर्विद पंडित अजय शंकर व्यास ने बताया कि मां सरस्वती की प्रतिमा या चित्र को उत्तर दिशा में लगाना चाहिए। इस दिशा में मूर्ति लगाने से इंसान को शिक्षा संबंधी कार्यों में सफलता मिलती है। और सभी काम बिना किसी बाधा के पूरे होने लगते हैं। मां सरस्वती की प्रतिमा या तस्वीर पीले वस्त्र अर्पित करें। पीले सरसों के फुल चढ़ाऐं। रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, पीले सरसों के फुल चढ़ाएं।
पुजा स्थान पर वाद्ययंत्र पुस्तक की भी पुजन करें। मां सरस्वती स्तुति वंदना पाठ करें। इच्छित फल प्राप्ति के वृत करें। पान सुपारी नारियल ध्वजा चढ़ाएं। वसंत पंचमी पर ब्रह्मचर्य का पालन करें किसी का अपमान ना करें। वृक्ष ना काटे हों सकें तों जल अर्पित करें। जानें अनजाने में भुलकर किसी को गलत शब्द नहीं कहें खासकर माता पिता गुरु शिक्षक से।
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