मियावाकी पद्धति लगाये पौधे, मिलेंगी ज्यादा आक्सीजन
निगम आयुक्त क्षितिज सिंघल ने किया उद्यानों का निरीक्षण
उज्जैन। आयुक्त ने शनिवार को उद्यानों एवं ऐसे स्थलों का निरीक्षण किया गया जहां वृहद स्तर पर पौधारोपण किया जा सकता है, जिससे हरियाली भी विकसित होगी एवं वातावरण में आक्सीजन का लेवल भी बढ़ेगा साथ ही पौधा रोपण के लिए ऐसी पद्धति का उपयोग किया जाए जिससे कम जगह में ज्यादा से ज्यादा संख्या में पौधे रोपित किए जा सके।
आयुक्त क्षितिज सिंघल द्वारा विक्रम वन के सामने रिक्त भूमि, विक्रम विश्वविद्यालय परिसर, अटल अनुमति उद्यान, महाश्वेता नगर, क्षिप्रा विहार एवं त्रिवेणी विहार के उद्यानों का निरीक्षण किया। उद्यान विभाग के अधिकारियों से कहां कि चयनित स्थानों के अतिरिक्त ऐसे स्थानों को भी देखें जहां रहवासीगण उद्यानों की समिति बनाते हुए पौधों की देखभाल भी कर सकें। निरीक्षण के दौरान उपायुक्त संजेश गुप्ता, कार्यपालन यंत्री अरुण जैन, उद्यान प्रभारी मनोज राजवानी, जनसंपर्क अधिकारी प्रदीप सेन, उपयंत्री मुकुल मेश्राम, गायत्री प्रसाद ढे़रिया उपस्थित रहे।
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क्या है मियावाकी पद्धति
यह पौधारोपण की एक पद्धति है जिसका अविष्कार मियावाकी नामक जापान के एक वनस्पति शास्त्री ने किया था इसमें छोटे-छोटे स्थानों पर छोटे-छोटे पौधे रोपे जाते हैं, जो साधारण पौधों की तुलना में 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं यह पद्धति विश्वभर में लोकप्रिय है और शहरी पौधारोपण की संकल्पना में क्रांति ला दी है। इस पद्धति का उपयोग करने हेतु सबसे पहले एक गड्डा बनाया जाता है जिसका आकार-प्रकार भूमि की उपलब्धता पर निर्भर होता है इस गड्ड़े में कंपोस्ट की एक परत डाली जाती है
तत्पश्चात प्राकृतिक कचरे की एक परत बिछाई जाती है और सबसे पहले ऊपर लाल मिट्टी की एक परत भी होती है यह प्रक्रिया 2 से 3 सप्ताह में पूरी हो जाती है। इस पद्धति में सघन वृक्षारोपण किया जाता है पौधों के सघन होने से सूर्य की रोशनी को धरती पर आने से भी रोकते हैं, जिससे खरपतवार नहीं उगने पाती हैं 3 साल के बाद इन पौधों की देखभाल की भी जरूरत नहीं पड़ती है और सामान्य स्थिति से 30 गुना ज्यादा सघन होते हैं।