
इंदौर: मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह द्वारा कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए गए विवादास्पद बयान ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। शाह के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश पर मानपुर थाने में भारतीय न्याय संहिता की धारा 152, 196(1)(बी), और 197(1)(सी) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। हालांकि, पूरे देश में हो रहे विरोध और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती सहित भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की आलोचना के बावजूद शाह ने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया है। इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में होनी है, जिस पर शाह का राजनीतिक भविष्य काफी हद तक निर्भर करेगा।
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विवाद की शुरूआत
मंत्री विजय शाह ने रविवार को इंदौर के महू के रायकुंडा गांव में एक हलमा कार्यक्रम में कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकवादियों की बहन कहकर अपमानित किया। उनके बयान में कहा गया, उन्होंने कपड़े उतार-उतार कर हमारे हिंदुओं को मारा और मोदी जी ने उनकी बहन को उनकी ऐसी की तैसी करने उनके घर भेजा। इस बयान का वीडियो मंगलवार को वायरल होने के बाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया और इसे भारत की संप्रभुता, एकता, और अखंडता को खतरे में डालने वाला करार दिया।
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मजबूरी और डैमेज कंट्रोल
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भाजपा दबाव में आकर फैसले नहीं लेती, जब तक कि उसकी छवि को बड़ा नुकसान न हो। मंत्री विजय शाह का इस्तीफा न लेने की प्रमुख वजह आदिवासी वोट बैंक को साधना है। हरसूद और आसपास के आदिवासी क्षेत्रों में शाह का 40 साल से दबदबा है। मध्यप्रदेश में 22% आदिवासी आबादी और 47 विधानसभा व 6 लोकसभा सीटें इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं। भाजपा को डर है कि शाह का इस्तीफा आदिवासी वोटर्स को नाराज कर सकता है, खासकर जब 2018 के बाद से इन सीटों पर उसका प्रदर्शन कमजोर रहा है।
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इसके अलावा, भाजपा कांग्रेस को इस मुद्दे का राजनीतिक लाभ नहीं लेने देना चाहती। कांग्रेस देशभर में प्रदर्शन कर इस मामले को भुनाने की कोशिश में है। भाजपा नहीं चाहती कि मंत्री विजय शाह के खिलाफ कार्रवाई का श्रेय कांग्रेस को मिले। साथ ही, शाह के बगावती तेवर भी पार्टी के लिए चुनौती हैं। सूत्रों के मुताबिक, जब हाईकोर्ट के आदेश के बाद संगठन ने उनसे इस्तीफा मांगा, तो उनके खेमे से संदेश आया कि ज्यादा दबाव पड़ा तो वे विधायकी भी छोड़ देंगे। उपचुनाव की स्थिति में आदिवासी वोट बैंक के कारण भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
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पार्टी और सरकार का रुख
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 13 मई को कैबिनेट बैठक के बाद मंत्री विजय शाह को कड़ी नसीहत दी और उनकी भाषा पर नियंत्रण रखने की चेतावनी दी। भाजपा संगठन ने भी शाह को तलब कर माफी मांगने या पार्टी छोड़ने का अल्टीमेटम दिया। इसके बाद शाह ने दो बार सार्वजनिक माफी मांगी। 13 मई को मीडिया के सामने और 14 मई को फेसबुक वीडियो के जरिए उन्होंने कहा, मेरे बयान से समाज की भावनाएं आहत हुईं, मैं शमिंर्दा हूं और माफी मांगता हूं।
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प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भी मंत्री विजय शाह को फटकार लगाई और छतरपुर में कर्नल सोफिया के परिजनों से मुलाकात के लिए वरिष्ठ नेताओं को भेजा। हालांकि, जब मीडिया ने उट यादव से शाह के इस्तीफे पर सवाल किया, तो उन्होंने पलटवार करते हुए कहा, ह्लकांग्रेस पहले अपने नेता सिद्धारमैया से इस्तीफा मांगे, जो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हैं।
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हाईकोर्ट की नाराजगी, सुप्रीम कोर्ट सुनवाई आज
हाईकोर्ट ने एफआईआर की भाषा पर नाराजगी जताई, क्योंकि इसमें शाह के बयान का स्पष्ट उल्लेख नहीं था। कोर्ट ने कहा कि एफआईआर केवल खानापूर्ति के लिए दर्ज की गई, ताकि इसे भविष्य में रद्द किया जा सके। कोर्ट ने अपने 14 मई के आदेश को एफआईआर का हिस्सा मानने का निर्देश दिया। वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मंत्री विजय शाह की याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए 16 मई की तारीख दी थी। साथ ही यह भी पूछा कि आप हाईकोर्ट क्यों नहीं गए। आप किस तरह के बयान दे रहे हैं? देखना चाहिए कि कैसे हालात हैं? आप जिम्मेदार पद पर हैं, जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
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आगे क्या?
इस मामले ने भाजपा के लिए गंभीर संकट पैदा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद मंत्री विजय शाह का भविष्य तय होगा। अगर कोर्ट सख्त रुख अपनाता है, तो भाजपा पर शाह के खिलाफ कार्रवाई का दबाव बढ़ेगा। वहीं, कांग्रेस इस मुद्दे को राष्ट्रवाद और महिला सम्मान से जोड़कर भाजपा को घेरने की कोशिश कर रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा शाह को बचाने की पूरी कोशिश करेगी, क्योंकि उनका जाना पार्टी के आदिवासी वोट बैंक और क्षेत्रीय समीकरणों को नुकसान पहुंचा सकता है।
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