धर्म

रक्षा बंधन पर भद्रा का साया, क्या है भद्रा जाने

कौन है भद्रा, शनि देव से क्या है इसका संबंध

गत वर्ष और इस वर्ष रक्षाबंधन पर अभि प्राय हम लोग भद्रा का विषय सर्वाधिक सुन रहे हैं। इसे लेकर एक विशेष लेख मेरे द्वारा लिखा गया है, जिसके जरिये आप जान सकते है कि आखिर क्या है भद्राकाल और कौन थी भद्रा, शनि देव से क्या था भद्रा का संबंध।

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शास्त्रों में पूजा-पाठ और शादी- विवाह से लेकर सभी कार्य शुभ मुहूर्त पर ही करने का विधान है। यही कारण है कि किसी भी शुभ-मांगलिक कार्य से पहले पंचांग देखकर मुहूर्त निकाले जाते हैं। शुभ तिथि व मुहूर्त में किए गए कार्य संपन्न और सफल होते हैं। शास्त्रों में भद्रा काल या भद्रा मुहूर्त को अनुकूल नहीं माना जाता है। इसलिए भद्रा काल में शुभ-मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।

कौन है भद्रा, शनि देव से क्या है इसका संबंध

धार्मिक कथाओं व मान्यताओं के अनुसार भद्रा को सूर्य देव की पुत्री और शनि देव की बहन कहा जाता है। स्वभाव में भद्रा शनि देव की तरह ही है। भद्रा का रूप भी भयंकर और विकराल है। यह शुभ कार्यों में विध्न पैदा करने वाली है। भद्रा को धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी महाकाली और असुरक्षयकरी जैसे 12 नामों से भी जाना जाता है।
इसलिए भद्राकाल में नहीं करने चाहिए शुभ कार्य

शास्त्रों में शुभ-मांगलिक कार्य करते समय भद्राकाल का विशेष ध्यान रखा जाता है. भद्रा काल में न किसी शुभ कार्य की शुरूआत होती है और न ही समाप्ति। भद्रा काल में मुंडन, गृह प्रवेश, वैवाहिक कार्यक्रम, पूजा-अनुष्ठान आदि जैसे कार्य अशुभ माने जाते हैं। विशेषकर भद्रा काल में होलिका दहन करना और रक्षाबंधन मनाना (राखी बांधना) वर्जित है।

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कैसे करें भद्रा की गणना

पंचांग के अनुसार मुहूर्त की गणना की जाती है. पंचांग के मुख्य भाग में तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण मुहूर्त होते हैं. करण की 11 संख्या होती है, जिसमें 4 अचर और 7 चर होते हैं। इन्हीं 7 चर वाले करण में एक करण को “विष्टी करण” कहा जाता है, जो भद्रा कहलाती है। चर करण होने के कारण भद्रा स्वर्ग लोक, पाताल लोक और पृथ्वी लोक पर हमेशा गतिशील होती है।

किस समय किस लोक पर होती ही भद्रा

  • चर करण होने के कारण भद्रा स्वर्ग, पाताल और पृथ्वी लोक पर हमेशा गतिशील होती है।
  • चंद्रमा के कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होने से भद्रा का वास “पृथ्वी” पर होता है।
  • चंद्रमा जब मेष, वृष या मिथुन राशि में होता है, तब भद्रा का वास “स्वर्ग लोक” में होता है।
  • चंद्रमा के धनु, कन्या, तुला या मकर राशि में होने से भद्रा “पाताल लोक” में वास करती है।
  • भद्रा जिस समय जिस लोक होती है उसका प्रभाव भी उसी लोक में होता है।
  • ऐसे में जब “पृथ्वी” पर जब भद्रा का वास होता है तो शुभ-मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।

भद्रा की तिथियां

समस्त करणों में भद्रा का विशेष महत्व है। शुक्ल पक्ष अष्टमी (8) व पूर्णिमा (15) तिथि के पूर्वाद्ध में, चतुर्थी (4) व एकदाशी (11) तिथि के उत्तरार्द्ध में, एवं कृष्ण पक्ष की तृतीया (3) व दशमी (10 ) तिथि के उत्तरार्द्ध में, सप्तमी (7) व चतुर्दशी (14) तिथि के पूर्वाद्ध में ‘भद्रा’ रहती है अर्थात् विष्टि करण रहता है।

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प.श्यामगुरु (तंत्र साधक) तीर्थपुरोहित

ज्योतिषाचार्य व वास्तुविद

श्री सिद्ध नारायण धाम ज्योतिष कार्यालय उज्जैन

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Dharmendra Bhati

मैं धर्मेंद्र भाटी, DB News24 का Author & Founder हूँ तथा पिछले 22 वर्षो से निरंतर सक्रिय पत्रकारिता के माध्यम राजनितिक, प्रशासनिक, सामाजिक और धार्मिक खबरों की रिपोर्टिंग करता हूँ साथ ही Daily जॉब्स, ज्योतिष, धर्म-कर्म, सिनेमा, सरकरी योजनाओ के बारे में आर्टिकल पब्लिश करता हूँ। हमारा संकल्प है कि नई-नई जानकारियाँ आप तक सरल और सहज भाषा में आप तक पंहुचे। जय हिन्द

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