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क्षत्रिय मारवाड़ी माली समाज में पति-पत्नी ने खेली अनौखी होली

घूँघट में खड़ी सैकड़ों महिलाओं में पत्नी को पहचान कर बाल्टी से डाला रंग

उज्जैन। उदूर्पुरा में रंगपंचमी के दूसरे दिन क्षत्रिय मारवाड़ी माली समाज द्वारा सालों से अनोखी होली की परंपरा का निर्वाह किया जा रहा हैं। इस आयोजन का इंतजार समाज के सभी वर्ग के लोगों को साल भर रहता हैं। यहीं कारण है कि शुक्रवार को आयोजित हुई इस अनोखी होली में हजारों की संख्या में लोग पहुंंचे।

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गौरतलब है कि 200 साल से चली आ रही पति-पत्नी की होली की अनूठी परंपरा का निर्वाह बखूबी किया जा रहा है। महिलाओं के बीच घूंघट में खड़ी पत्नी को पहचानना होता है। पत्नी को पहचान कर उसे रंग से भरे कड़ाव के पास लाकर बाल्टी से उस पर रंग डालता है। यदि पत्नी को पहचानने में चूक हो जाए और पति दूसरी महिला को रंग उड़ेल दे, तो वह हंसी का पात्र बनता है। रंगपंचमी के दूसरे दिन शीतला सप्तमी पर क्षत्रिय मारवाड़ी माली समाज अनूठी परंपरा निभाता है।

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क्षत्रिय मारवाड़ी माली समाज

पति-पत्नी सार्वजनिक रूप से रंगों से सराबोर होते हैं, लेकिन इसमें एक रोचक परंपरा है। बुजुर्गों का कहना है, यह परंपरा आपसी प्रेम, विश्वास और मनोरंजन से भरी होती है, जो समाज में उत्सवी माहौल बनाती है। शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिला-पुरूषों ने भाग लिया। आयोजन को भव्य रूप देने के लिए दंपतियों के लिए पुरस्कार भी तय किए गए थें।

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युवओं में भी रहता है उत्साह

क्षत्रिय मारवाड़ी माली समाज के अध्यक्ष मोती भाटी ने बताया, 200 साल से चली आ रही परंपरा में भाग लेने के लिए समाज के लोग दूसरे शहरों से भी आए थे। इस अनोखी परंपरा को निभाने युवाओं में उत्साह रहता है। 7 दिनों के होली उत्सव में डांडिया नृत्य किया गया। चौराहे पर शुक्रवार शाम 5 बजे से होली खेली गई। इस बार पति-पत्नी जोड़े को लकी ड्रॉ से नकद राशि से पुरस्कृत किया गया।

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लोगों को रहता है इंतजार

उदूर्पुरा चौराहे पर एक मंच लगाकर आयोजन किया गया। मच पर विशाल कड़ाव लगाया गया था। जिसमें केसरियां रंग का पानी भरा हुआ था। मंच के नीचे बड़ी संख्या में समाजजन मौजुद थे। नए और पुराने जोड़ों को क्रमवार मंच पर बुलाया जा रहा था। पहले पति का नाम पुकारा गया। वह घुंघट में खड़ी पत्नी को खोजकर मंच पर लाता और दोनों एक-दूसरे पर रंग का पानी डालते।

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सिंधिया रियासत के पहले से खेली जा रही होली

श्री क्षत्रिय मारवाड़ी माली समाज की अनोखी होली की परंपरा मराठा काल में सिंधिया रियासत के पहले से खेली जा रही है। माना जाता है कि सिंधिया रियासत के समय रियासत की महारानी भी होली देखने आते थी। उस समय ग्वालियर रियासत की ओर से माली समाज को ध्वजा निशान दिए गए हैं, जो आज भी समाज के मंदिर पर होली से शीतला सप्तमी तक लगाए जाते हैं। शहर के आस-पास से भी महिला-पुरुष अनोखी होली देखने आते हैं।

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Dharmendra Bhati

मैं धर्मेंद्र भाटी, DB News24 का Author & Founder हूँ तथा पिछले 22 वर्षो से निरंतर सक्रिय पत्रकारिता के माध्यम राजनितिक, प्रशासनिक, सामाजिक और धार्मिक खबरों की रिपोर्टिंग करता हूँ साथ ही Daily जॉब्स, ज्योतिष, धर्म-कर्म, सिनेमा, सरकरी योजनाओ के बारे में आर्टिकल पब्लिश करता हूँ। हमारा संकल्प है कि नई-नई जानकारियाँ आप तक सरल और सहज भाषा में आप तक पंहुचे। जय हिन्द

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