विक्रमोत्सव 2025: न्याय और प्रशासन पर ऐतिहासिक संवाद
चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने किया संबोधित

उज्जैन में आयोजित विक्रमोत्सव 2025 के दौरान ‘विक्रमादित्य का न्याय वैचारिक समागम’ में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सुरेश कुमार कैत और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने न्याय प्रणाली के सुधार और सामाजिक कल्याण के लिए कुर्सी की शक्ति के सदुपयोग पर महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। तीन दिवसीय समागम में सम्राट विक्रमादित्य की न्यायिक प्रणाली की प्रासंगिकता पर गहन चर्चा होगी।
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न्याय की कुर्सी: जिम्मेदारी या बोझ?
मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत ने कहा कि हम जज, पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी, मंत्री, मुख्यमंत्री हैं, लेकिन पद छोड़ने के बाद हम एक आम नागरिक होते हैं। कुर्सी पर बैठकर शक्ति का उपयोग समाज के कल्याण के लिए होना चाहिए, न कि अहंकार के लिए। अगर पावर को सिर पर चढ़ा लिया, तो रिटायरमेंट के बाद जीवन मुश्किल हो सकता है। उन्होंने हाईकोर्ट में लंबित मामलों पर चिंता जताई, जहाँ 4.64 लाख केस अभी भी पेंडिंग हैं और केवल 34 जज कार्यरत हैं, जबकि पद 53 हैं। जस्टिस कैत ने जजों की संख्या बढ़ाकर 85 करने की सिफारिश की है, ताकि न्याय प्रक्रिया तेज और सुचारू हो सके।
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त्वरित और पारदर्शी न्याय की परंपरा
जस्टिस कैत ने विक्रमादित्य के न्याय को त्वरित और पारदर्शी बताते हुए कहा कि उनके शासन में न्याय व्यवस्था व्यक्ति प्रधान नहीं, बल्कि प्रणाली प्रधान थी। विक्रमादित्य ने समाज के संतुलन और नैतिकता को बनाए रखने के लिए न्याय का उपयोग किया, जिससे उनका नाम आज भी न्याय के प्रतीक के रूप में लिया जाता है।
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न्याय प्रणाली की प्रासंगिकता
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि विक्रमादित्य की न्याय प्रणाली आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उनके समय में थी। भारतीय न्याय व्यवस्था का उद्गम वैदिक काल से हुआ है, और विक्रमादित्य ने इसे और अधिक सशक्त बनाया। उनका न्याय केवल दंड देने तक सीमित नहीं था, बल्कि सामाजिक और नैतिक दायित्वों की दिशा में समाज को अग्रसर करता था। उन्होंने आश्वासन दिया कि राज्य सरकार लंबित मामलों को देखते हुए जजों की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजेगी, ताकि प्रदेश में न्यायिक व्यवस्था को और अधिक मजबूत बनाया जा सके।
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उज्जैन: वीरों और न्याय का केंद्र
सीएम यादव ने उज्जैन को वीरों की जन्मभूमि बताते हुए कहा कि यह भूमि सम्राट विक्रमादित्य, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी जैसे महापुरुषों की जन्मदायिनी रही है। उज्जैन कभी ज्ञान, विज्ञान, कला और न्याय का प्रमुख केंद्र था, और आज भी इसकी ऐतिहासिक महत्ता बनी हुई है। विक्रमोत्सव 2025 के इस समागम में विक्रम विश्वविद्यालय, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, और जिला अभिभाषक संघ सहित कई संस्थाओं ने भाग लिया। तीन दिवसीय कार्यक्रम में विक्रमादित्यकालीन राजधर्म, न्याय व्यवस्था, और दंड विधान पर विस्तार से चर्चा की गई।
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सम्राट विक्रमादित्य का अमर न्याय वैभव
कार्यक्रम के अंत में, वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि विक्रमादित्य का न्याय वैभव भारतीय इतिहास में अमर है। सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ आज भी न्याय के उच्चतम आदर्शों की प्रेरणा देती हैं। उनका शासन एक सशक्त प्रणाली का प्रतीक था, जो समाज में संतुलन, सद्भाव और नैतिकता की स्थापना करता था। विक्रमोत्सव 2025 ने न केवल ऐतिहासिक न्याय प्रणाली की प्रासंगिकता को पुनर्जीवित किया, बल्कि वर्तमान न्याय व्यवस्था को बेहतर बनाने की दिशा में नए विचारों को जन्म दिया। यह समागम न्याय के आदर्शों और समाज कल्याण की भावना को सशक्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
विक्रमोत्सव 2025 के इस वैचारिक समागम में तीन दिनों तक विक्रमादित्यकालीन राजधर्म, न्याय व्यवस्था और दंड विधान पर गहन चर्चा होगी। इसमें न्यायविद, अभिभाषक, प्रशासनिक अधिकारी और शिक्षाविद भाग ले रहे हैं। यह आयोजन न केवल न्यायिक सुधार की दिशा में एक कदम है, बल्कि इतिहास से सीख लेकर आधुनिक न्याय प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास भी है।
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