
उज्जैन, 30 अक्टूबर 2025 भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता और उज्जैन उत्तर विधानसभा क्षेत्र से छह बार के विधायक रहे पूर्व मंत्री पारस जैन ने स्पष्ट शब्दों में ऐलान किया है कि वे अब कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे। 75 वर्षीय जैन ने पार्टी नेतृत्व को नसीहत देते हुए कहा कि वरिष्ठ और जमीनी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलना चाहिए, ताकि संगठन मजबूत रहे। उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा को याद करते हुए बताया कि उन्होंने कभी टिकट की मांग नहीं की, बल्कि पार्टी ने स्वयं उन्हें मौका दिया। 2023 के विधानसभा चुनाव में टिकट कटने के बाद से वे सार्वजनिक रूप से कम सक्रिय रहे हैं, लेकिन अब उन्होंने भविष्य में चुनावी मैदान से दूरी बनाने का पक्का इरादा जाहिर कर दिया है।
लंबी राजनीतिक यात्रा: 1990 से 2018 तक अजेय रहे
पारस जैन की राजनीतिक सफर 1990 से शुरू हुई, जब वे पहली बार उज्जैन उत्तर सीट से बीजेपी के टिकट पर विधायक बने। इसके बाद 1993 में दूसरी बार जीत हासिल की। वर्ष 1998 में हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 2003 से लगातार 2008, 2013 और 2018 तक वे इस सीट से विजयी रहे। इस तरह उन्होंने कुल छह बार विधानसभा में प्रवेश किया।
मध्य प्रदेश सरकार में उन्होंने कई महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी संभाली:
- वन विभाग
- स्कूल शिक्षा
- उच्च शिक्षा
- खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण
2013 में वे स्कूल शिक्षा विभाग के कैबिनेट मंत्री बने। 2016 के कैबिनेट फेरबदल में उन्हें ऊर्जा मंत्रालय सौंपा गया। जैन की कार्यशैली और जमीनी पकड़ के कारण वे उज्जैन क्षेत्र में बीजेपी के मजबूत स्तंभ माने जाते थे।
2023 में टिकट कटने का झटका…
2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पारस जैन का टिकट काटकर अनिल जैन कालूहेड़ा को उम्मीदवार बनाया। इसके बाद जैन किसी बड़े संगठनात्मक कार्यक्रम में नजर नहीं आए। अब उन्होंने मीडिया से बातचीत में साफ कहा, “ये पक्का है कि अब मैं कोई चुनाव नहीं लड़ूंगा।” उन्होंने अपनी उम्र का हवाला देते हुए कहा, “अब चुनाव लड़ने लायक समय नहीं बचा है और न ही वैसे लोग बचे हैं। पहले के और अब के चुनावों में बहुत अंतर आ गया है।”
जैन ने बताया कि वे आज भी रोजाना दो घंटे व्यायाम करते हैं और स्वस्थ हैं। “स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम जरूरी है,” उन्होंने कहा। हालांकि, उन्होंने पार्टी के प्रति वफादारी जताते हुए जोड़ा, “अगर पार्टी कोई दायित्व देगी तो उसे निभाऊंगा। मैं छह बार चुनाव लड़ा, लेकिन कभी टिकट की मांग नहीं की। पार्टी ने खुद दिया। अब शायद पार्टी ने सोचा होगा कि 75 वर्ष की उम्र हो गई है, इसलिए टिकट नहीं दिया। इसमें कोई नाराजगी नहीं, मैं पार्टी के प्रति वफादार हूं और उसकी सेवा करता रहूंगा।”
पार्टी नेतृत्व को नसीहत: जमीनी कार्यकर्ताओं को न भूलें
जब उनसे पूछा गया कि पार्टी में क्या बदल गया है, तो जैन ने बेबाकी से कहा, “मुझे लगता है कि पार्टी को नीचे के कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलना चाहिए। उम्मीद है कि प्रदेश के नए अध्यक्ष जमीनी कार्यकर्ताओं को जोड़ेंगे और पुराने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को नहीं भूलेंगे। यही मेरा उनसे निवेदन है।” उनकी यह टिप्पणी बीजेपी के आंतरिक संगठन पर सवाल उठाती है, जहां वरिष्ठ नेताओं को किनारे करने की शिकायतें समय-समय पर सामने आती रही हैं। जैन जैसे नेता, जो दशकों से पार्टी की नींव मजबूत करते रहे, अब संगठन में नई पीढ़ी के उदय और पुराने साथियों की अनदेखी पर चिंता जता रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पारस जैन का यह बयान मध्य प्रदेश बीजेपी में चल रही आंतरिक उथल-पुथल को उजागर करता है। 2023 चुनाव में कई वरिष्ठ नेताओं के टिकट कटने से असंतोष बढ़ा था। जैन का संन्यास न केवल व्यक्तिगत निर्णय है, बल्कि यह पार्टी के लिए एक संदेश भी है कि अनुभवी नेताओं को सम्मान और जिम्मेदारी देना जरूरी है। उज्जैन जैसे क्षेत्रों में जैन की लोकप्रियता अभी भी बरकरार है, और उनका सक्रिय रहना पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है, भले ही चुनावी मैदान से दूर। पारस जैन की यह घोषणा उज्जैन की राजनीति में एक युग का अंत मानी जा रही है। अब देखना यह है कि बीजेपी उनका अनुभव कैसे उपयोग करती है और जमीनी कार्यकर्ताओं को कितना महत्व देती है।



