मध्यप्रदेश में 34 करोड़ के GST घोटाले का पदार्फाश
लोन के बहाने डॉक्यूमेंट लेकर बनाई फर्में, कागजों में दिखाई खरीदी, सरगना को झारखंड से किया गिरफ्तार

जबलपुर। मध्यप्रदेश की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने जीएसटी (GST) में इनपुट टैक्स क्रेडिट के जरिए शासन को करोड़ों का चूना लगाने वाले एक बड़े गिरोह का भंडाफोड़ किया है। इस घोटाले में करीब 34 करोड़ रुपये के फजीर्वाड़े के सबूत मिले हैं। ईओडब्ल्यू ने गिरोह के मुख्य सरगना विनोद कुमार सहाय को झारखंड की राजधानी रांची से गिरफ्तार किया है। उसे शुक्रवार को जबलपुर जिला कोर्ट में पेश किया गया, जहां कोर्ट ने उसे 2 जुलाई तक रिमांड पर भेज दिया।
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फर्जी कंपनियों के जरिए किया गया घोटाला
जांच में सामने आया है कि विनोद कुमार सहाय ने इंदौर, भोपाल और जबलपुर के लोगों को लोन दिलाने का झांसा देकर उनके दस्तावेज हासिल किए। इसके बाद इनके नाम पर फर्जी कंपनियां बनाकर कागजों में खरीदी-बिक्री दिखाई गई। इन फर्जी लेन-देन के आधार पर आरोपी ने 33 करोड़ 80 लाख 43 हजार 252 रुपये का फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट हासिल किया। यह पूरा घोटाला बिना किसी वास्तविक माल या सेवा के आदान-प्रदान के किया गया।
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शिकायत से शुरू हुई जांच
इस मामले की शुरूआत जबलपुर के प्रताप सिंह लोधी की शिकायत से हुई। लोधी ने ईओडब्ल्यू को बताया कि उनके दस्तावेजों का दुरुपयोग कर उनके नाम पर फर्जी कंपनियां बनाई गई हैं। इसके बाद वाणिज्य कर विभाग, जबलपुर की सहायक आयुक्त वैष्णवी पटेल और ज्योत्सना ठाकुर ने अपनी प्रारंभिक जांच में आपराधिक साजिश और जीएसटी चोरी के संकेत दिए। ईओडब्ल्यू ने मामले की गहराई से जांच शुरू की, जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
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लोन के बहाने हासिल किए दस्तावेज
ईओडब्ल्यू की जांच में पता चला कि विनोद कुमार सहाय, जो पहले खुद को एनके खरे के नाम से पेश करता था, ने 2019-2020 के दौरान प्रताप सिंह लोधी, दीनदयाल लोधी, रविकांत सिंह और नीलेश कुमार पटेल से संपर्क किया। उसने इन लोगों को लोन दिलाने के लिए जीएसटी (GST) रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होने का झांसा दिया। इसके लिए उसने इनके आधार कार्ड, पैन कार्ड, फोटो, बैंक खाता स्टेटमेंट, कृषि भूमि के दस्तावेज (खसरा, किस्तबंदी खतौनी, ऋण पुस्तिका) और बिजली बिल जैसे दस्तावेज हासिल कर लिए।
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इन फर्जी कंपनियों का हुआ रजिस्ट्रेशन
आरोपी ने इन लोगों के नाम पर निम्नलिखित फर्जी फर्में रजिस्टर की:
- मेसर्स मां नर्मदा ट्रेडर्स: प्रताप सिंह लोधी के नाम पर, 7 फरवरी 2020 को रजिस्टर्ड।
- मेसर्स नमामि ट्रेडर्स: दीनदयाल लोधी के नाम पर, 13 अगस्त 2019 को रजिस्टर्ड।
- मेसर्स मां रेवा ट्रेडर्स: रविकांत सिंह के नाम पर, 19 फरवरी 2020 को रजिस्टर्ड।
- मेसर्स अभिजीत ट्रेडर्स: नीलेश कुमार पटेल के नाम पर, 26 फरवरी 2020 को रजिस्टर्ड।
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कागजों पर मौजूद थीं कंपनियां
ईओडब्ल्यू की जांच में पाया गया कि इन फर्मों के रजिस्टर्ड पतों पर कोई वास्तविक व्यवसायिक गतिविधि नहीं हो रही थी। ये कंपनियां केवल कागजों पर अस्तित्व में थीं। विनोद सहाय ने इन फर्जी फर्मों के नाम पर करोड़ों रुपये की फर्जी बिक्री (आउटवर्ड सप्लाई) दिखाई और फर्जी बिलों के आधार पर बोगस इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ अन्य व्यवसायियों को दिलाया। यह पूरा लेन-देन बिना किसी वास्तविक माल या सेवा के हुआ।
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पासवर्ड और ईमेल पर था पूरा नियंत्रण
जांच में यह भी सामने आया कि विनोद सहाय ने सभी फर्जी फर्मों के जीएसटी (GST) रजिस्ट्रेशन, बैंक खातों, ईमेल और पासवर्ड पर अपना नियंत्रण रखा। उसने इन फर्मों के जरिए फर्जी बिल बनाकर अन्य फर्मों को करीब 34 करोड़ रुपये का टैक्स क्रेडिट पास किया। इस तरह उसने शासन को भारी वित्तीय नुकसान पहुंचाया।
कोर्ट में पेशी और रिमांड
ईओडब्ल्यू ने विनोद कुमार सहाय को रांची से गिरफ्तार करने के बाद शुक्रवार को जबलपुर जिला कोर्ट में पेश किया। कोर्ट ने उसे 2 जुलाई तक रिमांड पर भेज दिया है। ईओडब्ल्यू अब इस मामले में अन्य संलिप्त लोगों की तलाश कर रही है और यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि इस घोटाले में और कितने लोग शामिल हैं।
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शासन को चेतावनी
यह मामला जीएसटी (GST) प्रणाली में मौजूद खामियों को उजागर करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि फर्जी कंपनियों के जरिए इनपुट टैक्स क्रेडिट का दुरुपयोग रोकने के लिए जीएसटी रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को और सख्त करने की जरूरत है। साथ ही, आम लोगों को भी अपने दस्तावेजों का उपयोग सावधानी से करने की सलाह दी जा रही है। ईएडडब्ल्यू ने इस मामले में जनता से अपील की है कि अगर किसी को अपने दस्तावेजों के दुरुपयोग की आशंका हो, तो वह तुरंत निकटतम पुलिस स्टेशन या ईओडब्ल्यू कार्यालय में शिकायत दर्ज कराए।
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