उज्जैन नगर निगम ने भी माना 5 महिनों में आवारा कुत्तों ने काटा 1612 लोगों को
– जनवरी से लेकर मई तक आवारा कुत्तों का शिकार हुए लोगों का आंकड़ा स्वयं निगम ने किया जारी
उज्जैन। कहते है कि कभी कभी जिम्मेदार अधिकारी स्वयं ऐसे कारनामे कर देते है, जिससे वह तो चर्चाओं में आते ही है, बल्कि उनका विभाग भी सुर्खियों में आ जाता है। ऐसा ही कारनामा उज्जैन नगर निगम (Ujjain Municipal Corporation) के स्वास्थ्य विभाग (health Department) द्वारा किया गया है।
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नगर निगम द्वारा 19 सितंबर को प्रेस रिलीज की गई है, जिसमें उन्होंने किसी समाचार पत्र में छपी खबर का खंडन करते हुए सरकारी अस्पताल के आंकडे दर्शाये है, जिसके जरिये साफ पता चलता है कि चार महिनों में 1612 लोगों को आवारा कुत्तों (stray dogs) ने अपना शिकार बनाया है, यह आंकड़ा तो उनका है जो सरकारी अस्पताल गये थे, निजी अस्पतालों में उपचार करवाने वालों का आंकड़ा शायद नगर निगम को नही मिला होगा, वर्ना यह आंकड़ा दुगना जरूर हो जाता। हालांकि जब इस संबंध में नगर निगम के जनसंपर्क विभाग से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग के आदेश पर यह आंकड़े जारी किये गये है।
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यह समाचार जारी किया गया…
विगत कुछ समय पूर्व समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था, कि शहर में लगभग प्रतिदिन कुत्ते द्वारा काटने की 50 घटनायें घटित हो रही है। उपरोक्त समाचार का खंडन कर विदित कराया जाता है कि प्रकाशित समाचार पत्र के अनुसार 50 घटनायें प्रतिदिन घटित होने से माह में आकंड़ा 1500 आता है, जबकि जिला चिकित्सालय के अभिलेख अनुसार इस वर्ष 2022 में माह जनवरी में 493, माह फरवरी में 288, मार्च में 262, अप्रैल में 369 तथा मई में 200 नगरीय क्षेत्र में श्वान द्वारा काटे जाने की घटनायें घटित हुई है।
यानि जनवरी से लेकर मई माह के इन चार महिनों में आवारा कुत्तों द्वारा काटे जाने के 1612 मामले केवल सरकारी अस्पताल में दर्ज है। इसको लेकर जब नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में पदस्थ संजय कुलश्रेष्ठ से चर्चा की गई तो उन्होंने कहां कि हमने यह आंकड़े सरकारी अस्पताल से लिये है और विभाग के वरिष्ठ अधिकारी के निर्देश पर समाचार पत्र में प्रकाशित आंकड़ों का खंडन करने के लिए समाचार जारी किया गया है।
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इसलिए नही पकड़े जाते आवारा कुत्ते
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों पर घूमने वाले आवारा कुत्तों को को इसलिए नही पकड़ा जा सकता है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा रखी है, यहीं कारण है कि अब आवारा कुत्तों को पकड़कर केवल उनकी नसबंदी कर वापस उन्हें उसी क्षेत्र में छोड़ दिया जाता है, जहां से उन्हें पकड़ा गया था। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा कुत्तों की नसबंदी को लेकर लाखों रूपये प्रतिवर्ष कागजों पर खर्च तो होते है, लेकिन क्या वास्तव में इनकी नसबंदी हो पा रही है, इसकों लेकर अभी भी आशंका बनी हुई है, क्योंकि अगर नसबंदी हो रही है तो फिर आवारा कुत्तों की संख्या कम होने की बजाया प्रतिवर्ष बढ़ क्यों जाती है।
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