उज्जैन। पंचांग की गणना के अनुसार श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर इस बार सोमवार को रक्षाबंधन पर्व मनाया जाएगा। इस बार रक्षाबंधन पर्व सोमवार के दिन श्रवण नक्षत्र की साक्षी में आ रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वार, तिथि, योग, नक्षत्र, करण का अपना विशेष प्रभाव है, जब किसी वार के साथ कोई नक्षत्र विशेष का संयोग होता है तो विशिष्ट योग की स्थिति बनती है। ऐसे विशिष्ट योग में पर्व व उत्सव काल विशेष महत्व रखते हैं।
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19 अगस्त सोमवार के दिन श्रवण नक्षत्र के होने से यह सर्वार्थ सिद्धि नाम का योग बन रहा है। सोमवार का दिन श्रवण नक्षत्र विशेष रूप से पूजनीय माना गया है। सोम श्रवण नक्षत्र में रक्षाबंधन अलग-अलग प्रकार के योगों की स्थिति भी बनाता है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि के साथ-साथ रवि योग का भी अनुक्रम रहेगा। यही नहीं ग्रहों में केंद्र त्रिकोण का संबंध भी बनेंगे। यह स्थिर समृद्धि व धार्मिक उन्नति का भी सूचक है। इस दृष्टि से सोम श्रवण नक्षत्र महत्वपूर्ण है।
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रक्षाबंधन पर 5.30 घंटे रहेंगे विशेष मुहूर्त
पूर्णिमा पर रक्षाबंधन के संबंध में अलग-अलग प्रकार की कथाएं हैं। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार की कथा है। राजा बलि का रक्षाबंधन का रूपक सामने आता है, जिसमें धर्म स्वरूप सूत्र को रक्षा के लिए प्रतिबद्ध करने के वचन व नियम है। इस बार रक्षाबंधन काल 19 अगस्त सोमवार के दिन श्रवण नक्षत्र उपरांत धनिष्ठा नक्षत्र व शोभन योग में आ रहा है। इस दिन भद्रा का समय दोपहर 1.31 तक रहेगा। उसके बाद रक्षाबंधन का पर्व काल मनाया जाएगा। 1.31 से शाम 7 बजे तक खास मुहूर्त है। इसके बीच रक्षा सूत्र बांधा जा सकेगा।
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भद्रा काल में रक्षा सूत्र नहीं बांधना
भद्रा काल में रक्षा सूत्र नहीं बांधना और होलिका दहन नहीं करना चाहिए। सोमवार की दोपहर 1.31 बजे तक भद्रा रहेगी। अत: भद्रा समाप्ति के बाद ही बहनों को रक्षा सूत्र बांधना श्रेष्ठ रहेगा। चूंकि भद्रा करण है और यह हर वर्ष ही रक्षाबंधन के दिन आती है। भद्रा कृष्ण पक्ष की तृतीया, सप्तमी, दशमी और चतुर्दशी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, अष्टमी, एकादशी और पूर्णिमा पर रहती है। विष्टिकरण को ही बोलचाल की भाषा में भद्रा कहा जाता है। यह शुभ कार्य के लिए अशुभ बताई गई है।
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