इंदौर निगम में 150 करोड़ का ड्रेनेज घोटाला
- भ्रष्टाचार कर सके, इसलिए अफसर ने अपना डिमोशन कर लिया
इंदौर। भ्रष्टाचार करने के लिए एक अधिकारी ने खुद की पोस्टिंग निचली पोस्ट पर कर ली। इसका ऑर्डर भी खुद ही निकाला। यह पूरा खेल इंदौर नगर निगम में हुए 150 करोड़ रुपए के ड्रेनेज घोटाले से जुड़ा हुआ है। करप्शन के इस केस में ऑडिट डिपार्टमेंट के डिप्टी डायरेक्टर अनिल गर्ग, समर सिंह परमार और रामेश्वर परमार के खिलाफ भी केस दर्ज है।
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5 करोड़ रुपए से ज्यादा के फर्जी बिल जारी करने से पहले इन्होंने इनकी जांच नहीं की। 45 किमी की सड़कें और 500 चेंबर के बिल एक ही दिन में जारी करने के भी आरोप हैं। तीनों ने अपर सत्र न्यायालय से राहत नहीं मिलने पर जमानत के लिए हाईकोर्ट (इंदौर) में याचिका लगाई थी। पुलिस की ओर से अधिवक्ता कमल कुमार तिवारी ने पैरवी करते हुए कोर्ट को कहा कि तीनों को जमानत मिली तो जांच पर विपरीत असर पड़ेगा।
नगर निगम को बड़ी आर्थिक क्षति
10 सितंबर को जस्टिस पीसी गुप्ता की खंडपीठ ने फैसले में कहा कि नगर निगम को बड़ी आर्थिक क्षति हुई है। आरोपियों की मिलीभगत भी प्रतीत होती है। ऐसे में इन्हें जमानत देने का कोई उपयुक्त कारण नहीं बनता है। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ सालों में इंदौर निगम में ड्रेनेज, प्रधानमंत्री आवास योजना, वर्कशॉप, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट, अमृत परियोजना जैसे प्रोजेक्ट्स में गड़बड़ियां की गई हैं। इसकी कड़ियां भोपाल से जुड़ी हैं। लेनदेन के इस पूरे मामले में ऑडिट डिपार्टमेंट के डायरेक्ट की भी भूमिका है।
खुद को निचली पोस्ट पर ज्वाईन करवाया
ऑडिट डिपार्टमेंट के जॉइंट डायरेक्टर अनिल गर्ग ने खुद को निचली पोस्ट डिप्टी डायरेक्टर पर जॉइन कर काम शुरू किया। अधिकारी ने जॉइनिंग के लिए जिस नियम का हवाला दिया, वो है ही नहीं। न ही सरकार ने कोई आदेश जारी किया। इस अधिकारी के जॉइन करने के बाद सरकारी आदेश जारी हुआ। इसमें भी फजीर्वाड़ा सामने आया।
यह है पूरा मामला…
नगर निगम में जो काम हुए ही नहीं, ठेकेदारों ने अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत से उन कामों के दस्तावेज और बिल तैयार कर पेमेंट ले लिया। ऐसे एक नहीं, कई मामले हैं। ये भी साल 2022 के पहले के हैं। मास्टरमाइंड इंजीनियर अभय राठौर (अभी जेल में है) ने नगर निगम में असिस्टेंट इंजीनियरों के नाम से फर्जी फाइलें बनाईं। इसके बाद फर्जी वर्क आर्डर हुए। एग्जीक्यूटिव और सुपरवाइजिंग इंजीनियरों के साइन हुए, अपर कमिश्नर के भी फर्जी साइन हुए। फिर बिल अकाउंट विभाग में लगाए गए और यहां भी फर्जी तरीके से ही पेमेंट हो गया। यह पूरा काम ठेकेदारों की मिलीभगत से हुआ था।
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गर्ग के बुरहानपुर-खंडवा कार्यकाल की हो जांच
5 अप्रैल 2021 को जारी आदेश में शासन ने गर्ग को न केवल इंदौर नगर निगम का रेसिडेंट आडिटर बनाया, बल्कि खंडवा और बुरहानपुर के नगर निगम, दोनों जगहों की कृषि उपज मंडी, कृषि महाविद्यालय खंडवा का भी रेसिडेंट आडिटर बना दिया था। ऑडिट डिपार्टमेंट के जानकारों का कहना है कि एक अधिकारी इतनी जगहों के ऑडिट की मॉनिटरिंग कर ही नहीं सकता। सूत्रों का कहना है कि गर्ग जब तक इन जगहों पर रेसिडेंट ऑडिटर रहे, तब तक के उनके कार्यकाल की भी जांच होना चाहिए। यहां से करोड़ों का भ्रष्टाचार सामने आएगा।
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35 दिन में करोड़ों का भ्रष्टाचार
गर्ग ने निचली पोस्ट पर जॉइनिंग और शासन का असल आदेश जारी होने के दिन तक यानी 35 दिन में 53 बिल पास किए।जिन फर्मों ने ये बिल लगाए, उन्होंने कहीं भी अपनी फर्म द्वारा किए गए काम का स्पेसिफिक जिक्र नहीं किया। ऐसे में यह पकड़ पाना मुश्किल है कि जो बिल पास किया गया, वो काम वाकई में हुआ भी या नहीं। 6 करोड़ 34 लाख 48 हजार 6 सौ 42 रुपए के बिल के मुताबिक, अहमदाबाद की एक फर्म ने प्रधानमंत्री आवास योजना (तृतीय चरण) अंतर्गत ग्राम सिंदोड़ा रंगवासा फेस-2 में प्रस्तावित इकाइयों का निर्माण कार्य करने के बदले पैसा मांगा है।
गर्ग ने ही इसे 9 मार्च 2021 को पास कर दिया। सूत्रों का कहना है कि ऐसे बेनामी न जाने कितने बिल पास हुए। इनका फिजिकल वेरिफिकेशन हुआ भी या नहीं? इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। न ही जिस काम के बदले बिल पास किए गए,उन्हें बाद में देख पाना संभव है। 35 दिन में 1 करोड़ के 53 बिल पास हुए, लेकिन 1 करोड़ से कम राशि के सैकड़ों बिलों को भी जोड़ा जाए, तो ये आंकड़ा 100 करोड़ रुपए से ज्यादा का हो जाएगा।
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क्या कहता है अधिनियम?
नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 के तहत स्थानीय निधि संपरीक्षा (रेसिडेंट ऑडिट) अधिनियम 1973 के मुताबिक संभागीय संयुक्त संचालक भुगतान वाउचर्स की नोटशीट पर साइन नहीं कर सकते। जबकि, गर्ग ने ऐसी कई नोटशीट पर साइन किए हैं। नगर निगम में अभी संभागीय संयुक्त संचालक राजकुमार सोनी पदस्थ हैं। इनके पास इंदौर के साथ भोपाल नगर निगम का भी चार्ज है। इसके साथ ही वे भोपाल में पंचायतों का ऑडिट भी देखते हैं। नगर निगम में अभी संभागीय संयुक्त संचालक राजकुमार सोनी पदस्थ हैं। इनके पास इंदौर के साथ भोपाल नगर निगम का भी चार्ज है। इसके साथ ही वे भोपाल में पंचायतों का ऑडिट भी देखते हैं।
बड़ा अधिकारी छोटे पद पर कर रहा काम
इंदौर नगर निगम अपर आयुक्त देवधर दवाई ने भी माना है कि बड़ा अधिकारी छोटे पद पर काम कर रहा था। उन्होंने कहा कि यह नियुक्ति वित्त विभाग भोपाल से होती है। हमने कई बार इस बात से उन्हें अवगत करवाया है। इधर ऑडिट डिपार्टमेंट (भोपाल) के अपर संचालक आरएस कटारा का कहना है कि शासन की ओर से जो भी नियुक्तियां की गई हैं, वे नियमानुसार हैं। इंदौर और भोपाल नगर निगम में ऑडिट विभाग का जिम्मा अभी राजकुमार सोनी के पास है। काम में किसी तरह की बाधा न आए, इसकी पूरी कोशिश है।
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